संसाधन बचाओ ! आजीविका बचाओ !
कंपनियों की ज़ागीर नहीं, ये देश हमारा है !
नए भूमि अधिग्रहण बिल के खिलाफ
विकास नियोजन में ग्राम सभा की सही भागेदारी और भू–अधिकार कानून चाहिये !
जंतर मंतर, दिल्ली में जनमोर्चा
देश भर में विभिन्न कार्यक्रम, मोर्चे और प्रस्ताव |
21-22-23अगस्त, 2012
प्रिय साथी, जिंदाबाद !!
पिछले कई सालों से भूमि अधिग्रहण एवं पुनर्वास के सवाल पर नया कानून बनाने की सरकारी कोशिश रही है। जिस पर देश भर के किसान, मछुआरे, भूमिहीन कामगार, दलित, आदिवासी, ग्रामीण–शहरी महिलायें व शहरी गरीब एवं मेहनतकश तबका लगातार इस पर अपनी प्रतिक्रिया और प्रत्युत्तर देते रहे हैं। आज देश के हर कोने में प्राकृतिक संसाधनों की रक्षा को लेके जन संघर्ष जारी है | देश का कोई भी भाग जन संघर्षों से अछूता नहीं है, जैसे नर्मदा, टिहरी, दामोदर, कोयलकारो, सिंगूर, नन्दीग्राम, सोनभद्र, छिन्दवाड़ा, लखीमपुर, भावनगर, मुंद्रा, काशीपुर, रायगढ़, श्रीकाकुलम, वांग मराठवारी, फतेहाबाद, असम, अरुणाचल या फिर मध्य भारत के खदानों वाले क्षेत्रों सहित मुंबई, पटना, दिल्ली, बंगलोर आदि शहरी बस्तियां । अपनी ही सरकार से अपनी ही भूमि की रक्षा के लिये होने वाले शहीदों की सूची भी बढ़ती जा रही है और हमारे साथियों की संख्या जेलों में भी बढ़ रही है । इन के बावजूद जन संघर्षो के बदौलत ही सरकार और कंपनियां अपने नापाक इरादों में कामयाब नहीं हो पाई है |
भूमि अधिग्रहण जन संघर्षों की बदौलत एक राजनैतिक मुद्दा बन गया है, ऐसे में एक राजनैतिक तौर से सर्वसम्मति से लाए गए कानून की जरूरत है ना की एकतरफा तौर पर बार–बार नाम बदल–बदल कर भूमि अधिग्रहण बढ़ाने और पूंजीपतियों के पक्ष का कानून | ग्रामीण विकास मंत्रालय ने एक संयुक्त बिल पेश किया है और उसका नाम रखा है ‘‘उचित मुआवजे का अधिकार, पुनर्स्थापना, पुनर्वास एवं पारदर्शिता भूमि अधिग्रहण बिल, 2012’’ । जिसमें दावा है कि यह सरकार की प्रतिबद्धता को प्रतिबिम्बित करेगा, परियोजना प्रभावित लोगों के लिए कानूनी गारन्टी की सुरक्षा देगा, और भूमि अधिग्रहण प्रक्रिया में पारदर्शिता सुनिश्चित करेगा। लेकिन ये दावे बिलकुल खोखले हैं !
इस बिल में जिस तरह से ग्रामीण विकास मंत्रालय ने जनसंगठनों के सुझावों और सर्वदलीय संसदीय स्थायी समिति की रिर्पोट को नकारा है वह एक प्रकार से अनादर है, जनसंघर्षो का, जो कि न सिर्फ भूमि, जल, जंगल खनिज या जलीयसंपदा पर सामुदायिक अधिकारों की सुरक्षा के लिए संघर्ष कर रहे हैं बल्कि वर्षों से नये, सही अर्थों में लोकतांत्रिक ‘विकास योजना अधिनियम’ का प्रस्ताव भी रख रहे हैं। सरकार को समझना होगा की ढांचागत विकास एवं शहरीकरण की नींव लाखों लोगों की कब्रों पर नहीं रखी जा सकती ।
सर्वदलीय संसदीय समिति की सिफारिशों के विपरीत ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा बिल में किये गये कुछ महत्वपूर्ण परिवर्तन जो की संघर्षों की मांगों के बिलकुल विपरीत है, निम्न हैं –
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सरकार निजी कंपनियों और निजी – सरकारी साझेदारी की परियोजनाओं के लिए भूमि अधिग्रहण करेगी | हम मानते हैं की यह बिलकुल ही गैरकानूनी होगा और सरकार को निजी कंपनियों के मुनाफे के लिए दलाली करने की जरूरत नहीं है | देश की बहुमूल्य सम्पदा जिस पर करोड़ो लोगों की जीविका आधारित है उसे सरकार चंद लोगों के मुनाफे के लिए जनता का हित बोल कर नहीं दे सकती |
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केवल बहुफसलीय भूमि को ही अधिग्रहण से बाहर रखा जा सकता है । देश का ७५% भूमि बारिश आश्रित और एक फसली है जो की छोटे किसानों, दलितों, आदिवासिओं के हाथ में हैं, इसलिए जरूरी है की उनकी जीविका की रक्षा की जाए | हम मानते हैं खाद्य सुरक्षा के लिए यह भी जरूरी है की भूमि सुरक्षा कानून, वन सुरक्षा कानून की तर्ज पर लाया जाए |
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मंत्रालय 16 अधिनियमों में से 13 को बाहर करना चाहता है जिसमें उद्योग विकास अधिनियम, भूमि अधिग्रहण (खदान) अधिनियम, नेशनल हाईवे अधिनियम एवं अन्य शामिल हैं। इसका मतलब है कि 90% भूमिअधिग्रहण जिन कानूनों से होता है वह जारी रहेगा, यूंही उजड़ते रहेंगे तथा यह अन्याय जारी रहेगा और इसमें कोई परिवर्तन नहीं आएगा।
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यदि परियोजना अधिग्रहित भूमि का उपयोग नही करती तो किसानों के बजाय इसे राज्य भूमि बैंक को को दे दिया जाये । हम मानते हैं की इस मौके का उपयोग भूमि सुधार के लिए हो और इसका उचित बँटवारा किसानों और भूमिहीनों के बीच हो |
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ग्राम सभा और बस्ती सभा की पूरी भूमिका को ही नाकारा जा रहा है और सरकारी बाबुओं की तानाशाही जारी रहेगी | हम मानते हैं की अगर मामला जन विकास का है तो जनता तय करेगी की जन विकास कैसा हो और कौन करेगा |
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कानून के प्रावधान पूर्व विस्थापित लोगों के हकों के लिए लागू नहीं होगा | देश में आज भी तकरीबन ६–८ करोड़ लोग हैं जिनका सही पुनर्वास नहीं हुआ है | अगर सरकार पहली बार आज़ादी के ६५ सालों के बाद एक कानून ला रही है तो फिर उनके साथ न्याय क्यों नहीं, इसलिए जरूरी है की राष्ट्रीय स्तर पर एक राष्ट्रीय पुनर्वास एवं पुनर्स्थापन आयोग बनाया जाए |
अभी तक किसी भी सरकारी बिल में शहरी बेदखली का जिक्र तक नही है…………….
इस बिल में भी स्थायी समिति एंव ग्रामीण विकास मंत्रालय, दोनों की टिप्पणियों में शहरी क्षेत्र की स्थिति को लगभग पूरी तरह छोड़ दिया गया है, शहरों में ज्यादातर अधिग्रहण नहीं है, किन्तु बेदखली है, क्रूर एवं अन्यायपूर्ण, उच्च लोगों की रीयल इस्टेट से लेकर ढांचागत विकास किया जा रहा है किन्तु प्रभावितों को जीवन एवं आजीविका तथा आश्रय के अधिकार दिये बिना। हर बड़े–छोटे शहरों से मेहनतकश मजदूरों की बस्तियों को उजाड़ा जा रहा है। शहरी भूमि सीमा कानून खत्म कर दिया गया है या उसे नज़रंदाज़ किया जा रहा है जिससे अमीरों द्वारा शहरी भूमि खरीद की कोई सीमा नही है। दूसरी तरफ शहरों में निर्माण मजदूरों, कारीगर व अन्य कामगार तबको के लिये आवास का कोई भी अधिकार नही है। इसलिए जरूरी है की एक अलग अधिनियम बनाया जाए ताकि लाखों शहरी लोगों एवं शहरी भूमि को अनुचित प्रयोग से बचाया जा सके। अतः बिल का जो प्रारूप अभी है उसे ‘‘ग्रामीण बिल’’ ही कहा जाना चाहिये।
इसलिये एक बार फिर हम सब जनआन्दोलनों के लोग, देशभर से 21-23 अगस्त को दिल्ली में विशाल जनमोर्चे में शामिल होंगे और उसी दिन देश के हरेक आंदोलन के क्षेत्रों और ग्राम सभाओं में कार्यक्रम करेंगे और सरकार को चेतावनी देंगे की जन विरोधी कानून के खिलाफ हमारा संघर्ष अटूट है और देश की प्राकृतिक संसाधनों का अधिग्रहण निजी कंपनियों के मुनाफे के लिए हरगिज़ नहीं होने देंगे |
संसद के इस सत्र में जन विरोधी कानून को पास करने का हम विरोध करते हैं |
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सरकार को पहले आज़ादी के बाद से अभी तक अधिग्रहित जमीनों का उपयोग, उससे विस्थापित लोगों का पुनर्वास और अधूरे भूमि सुधार का पूरा ब्यौरा एक श्वेतपत्र में देना होगा तभी जाकर किसी भी नयी जमीन के कृषि के अलावे उपयोग और जन परियोजनों के लिए हो सकती है |
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देश में भूमि संघर्ष में शहीद हुए बलिदानियों का लहू यूँही व्यर्थ नहीं जा सकता, उनके परिजन शामिल होंगे पूरे देश भर के कार्यकर्मों में और सरकार से मांगेंगे हिसाब । हमारे प्राकृतिक संसाधनों की लूट यूँही अब और ज़ारी नहीं रह सकती |
पहले पुराना हिसाब साफ़ करो, फिर नए की बात करो !
आइये, जुडिये जंतर–मंतर पर, संसद के सामने, अपने अपने खेत खलिहान, गांव, जिले, शहर और संघर्ष क्षेत्रों में और सरकार को यह बता दें की हम विकास के नाम पर विस्थापन होने नहीं देंगे और कोई भी विनाशकारी और पूंजीपतियों के पक्ष का कानून पास होने नहीं देंगे |
शामिल होइए अपने–अपने बैनर—झण्डे—नारे—आंदोलनो की फोटो प्रर्दशर्नी—फिल्मों के साथ……….. भूमि संघर्ष में बलिदानियों के फोटो व साहित्य को लेकर पूरे जोश के साथ………..
………………………………… शासक और पूंजीपति वर्ग जान ले कि भूमि स्वतंत्रता के लिये कुबार्नी और जनसंघर्ष ज़ारी है और ज़ारी रहेगा ।
कार्यक्रम के लिये जरुरत हैः–
विभिन्न कामों हेतु कार्यकर्ता, भोजन, कनात, कार्यालय खर्च आदि।
विस्तृत व लगातार जानकारी के लिये कृप्या संपर्क में रहे।
हम लड़गें साथी, अपनी आजादी के लिए, अपने हक़ के लिए !
“संघर्ष“ के साथी
मेधा पाटकर– नर्मदा बचाओं आंदोलन व जनआन्दोलनो का राष्ट्रीय समंवय (एनएपीएम); अशोक चौधरी, मुन्नीलाल – राष्ट्रीय वनजन श्रमजीवी मंच (NFFPFW); प्रफुल्ल सामंत्रा – लोक शक्ति अभियान, एनएपीएम, ओडिसा; रोमा, शांता भटाचार्य, कैमूर क्षेत्र महिला मजदूर किसान संघर्ष समिति, उप्र – NFFPFW; गौतम बंधोपाध्याय – नदी घाटी मोर्चा, एनएपीएम, छत्तीसगढ़; गुमान सिंह – हिम नीति अभियान, हिमाचल प्रदेश; उल्का महाजन, सुनीती एस आर, प्रसाद बागवे – सेज विरोधी मंच और एनएपीएम, महाराष्ट्र; डा0 सुनीलम्, एड0 अराधना भार्गव – किसान संघर्ष समिति, एनएपीएम, मप्र; गेबरियेला डी, गीता रामकृष्णन – पेरिनियम इयक्कम् और एनएपीएम, तमिलनाडु; शक्तिमान घोष – राष्ट्रीय हाकर फैडरेशन, एनएपीएम; भूपेन्द्र रावत, राजेन्द्र रवि, अनीता कपूर – जनसंघर्ष वाहिनी और एनएपीम, दिल्ली; अखिल गोगाई – कृषक मुक्ति संग्राम समिति, एनएपीएम, आसाम; अरुंधती धुरु, संदीप पाण्डेय – एनएपीएम, उप्र; सिस्टर सीलिया – डोमेस्टिक वर्कर यूनियन, एनएपीएम, कर्नाटक; सुमीत बंजाले, माधुरी शिवकर, सिंप्रीत सिंह – घर बचाओ, घर बनाओ आंदोलन, एनएपीएम, मुंबई; माता दयाल – बिरसा मुंडा भू अधिकार मंच, मप्र (NFFPFW); डा0 रुपेश वर्मा – किसान संघर्ष समिति, एनएपीएम, उप्र; मनीष गुप्ता – जन कल्याण उपभोक्ता समिति, एनएपीएम, उप्र; विमलभाई – माटू जनसंगठन, एनएपीएम, उत्तराखंड; बिलास भोंगाडे – गोसी खुर्द प्रकल्प ग्रस्त संघर्ष समिति, एनएपीएम, महाराष्ट्र; रामाश्रय सिंह – घटवार आदिवासी महासभा, एनएपीएम, झारखण्ड; आनंद मजगांवकर, पर्यावरण सुरक्षा समिति, एनएपीएम, गुजरात; रजनीश, रामचंद्र राणा, कदम देवी, थरू आदिवासी एवं तारे क्षेत्र महिला मजदूर किसान मंच, उप्र | ————————————————————————————————————————
विस्तृत जानकारी के लिये संपर्कः– संघर्ष, C/O, NAPM, 6/6 जंगपुरा बी, नई दिल्ली – 110014 शीला : 9212587159 / 9818411417, संजीव – 99958797409, श्वेता-9911528696 action2007@gmail.com, napmindia@gmail.com