· जन अन्दोलानोंको पूरक : चुनावी राजनीति में करेंगे प्रवेश |
· ‘आप’ के साथ संवाद से उभरे ठोस निर्णय ||
जन आंदोलनों के राष्ट्रीय समन्वय के समन्वय समिति की दो दिवसीय बैठक 16-17 जनवरी के रोज दिल्ली में संपन्न हुई | इस बैठक में चुनावी राजनीति में हस्तक्षेप – इसकी ज़रूरत एवं असर के साथ साथ आम आदमी पार्टी से रिश्ते/ संबंधों पर विशेष बहस हुई | मुंबई में 12 जनवरी को हुई पश्चिम भारत के समन्वयी संगठनों के साथ बिहार, बंगाल, केरल व तमिलनाडु आदि राज्यस्तरीय विचार विमर्श के दखल इस बैठक में ली गयी |
समन्वय समिति ने ‘आप’ को सक्रिय समर्थन के साथ साथ पार्टी और आंदोलनों के बीच संभाव्य संवाद – सरंचना भी चर्चा हुई |
उपस्थितों ने आज की राजनीति में आया ठहराव, शासकों का जनविरोधी एजेंडा और नीतियां, जनता के संसाधनों की लूट, हर क्षेत्र में वंचना एवं विषमता और राजनीतिमें आयी मूल्यहीनता, उपभोगवाद तथा अपराधीकरण को देखते हुए राजनीति का चरित्र बदलने की और जनता द्वारा सशक्त हस्तक्षेप की ज़रूरत पर चर्चा की| कुछ आंदोलनों ने आन्दोलन की गैर संसदीय राजनीति ही जारी रखने का आग्रह किया तो अन्य आंदोलनों ने प्रत्यक्ष चुनावी हस्तक्षेप की कड़ी ज़रूरत और उसीसे अवकाश हासिल करने की सम्भावना पर जोर दिया | मूलतत्ववाद और साम्प्रदायिकता का खतरा तथा शराब, पैसा, गुंडागर्दी पर आधारित राजनीति के संकट पर भी चुनौती लेने की बात सर्वमान्य हुई |
इसी से आज तक आन्दोलन की राजनीति में ही सक्रिय रहे साथियों में से कईयों ने चुनाव द्वारा जनतांत्रिक मोर्चा – लोकसभा, विधानसभा पर भी उतरना ज़रूरी समझा है| गैर संसदीय राजनीति को पूरक तथा ‘आन्दोलन’ प्रक्रिया के ही एक हिस्से के रूप में संसदीय राजनितिक हस्तक्षेप होगा, इस पर बहुमत था |
‘आप’ ने इस मुद्दे पर लोगो को प्रेरित करके जन आन्दोलनों से उभरे समता और न्यायिक प्ररिप्रेक्ष उसमे कई मुद्दों पर जन उभार लाया है | जनता को वैकल्पिक राजनिति की ज़रूरत महसूस होने पर भी ज़रूरी है, नयी राजनिति प्रकृति की जनता की उपेक्षा बढ़ी है इसपर सहमती जताई गयी |
जनवरी 16 के रोज़, देर रात तक ‘आप’ के नेतागण योगेन्द्र यादव और अजित झा के साथ बातचीत होकर, उसके बाद कई निर्णय लिए गये |
· एन. ए. पी. एम् से जुड़े कई सारे आन्दोलनों का मानना है कि वैकल्पिक राजनिति की और बढ़ रही ‘आप’ की प्रक्रिया ( एक प्रकार के आन्दोलन) का स्वागत होने और उसे समर्थन देना ज़रूरी है |
· समन्वयकों ने ‘आप’ की विचारधारा और ‘नज़रिया’ में आदिवासी, किसान, गरीब के शासन व प्रणाली सम्बन्धी मुद्दे आर्थिक विचार प्रणाली तथा अन्य मुद्दों पर चर्चा की, सुझाव भी रखे |
· कुछ जन संगठनो को ( जैसे असम के कृषक मुक्ति संग्राम समिति) आज से आगे भी गैर संसदीय राजनिति आन्दोलन को ही आगे बढ़ाना है जिसके लिए वे पूर्ण: स्वतंत्र रहेंगे |
· जनांदोलन तथा जनांदोलनो के राष्ट्रीय समन्वय की ज़रूरत बेहद है और बनी रहेगी | आन्दोलन की आज तक की सफलता के बाद भी नए नए आयामों के साथ समन्वय प्रक्रिया, संघर्ष और निर्माण कार्य सशक्त करना भी जारी रहेगा |
· जो ‘आप’ को समर्थन देंगे, ऐसे सभी संगठन/ आन्दोलन सक्रिय रूप से
– ‘आप’ के सदस्यता अभियान में हिस्सा लेंगे
– आंदोलनों के प्रतिनिधि विविध समितियों पर अपना योगदान देंगे |
– ‘आप’ के घोषणापात्र / संकल्पपात्र के अंतिम स्वरुप देने में हिस्सा लेंगे |
· जन आंदोलनों के सशक्त जनाधार के साथ जूझने वाले, निर्माण में लगे कई वरिष्ठ कार्यकर्ता चुनाव में उतरने की तयारी (‘आप’ द्वारा) करेंगे |ऐसे ‘जनप्रतिनिधि’ जनता की राय लेने की प्रक्रिया अगले कुछ दिनों में सघन रूप से, अपने अपने कार्यक्षेत्रों में चलाएंगे |
· ‘आप’ के द्वारा जल्दी ही जन आंदोलनों के साथ संवाद, उनके मुद्दों पर नीति – भूमिका निर्धारण के लिए एक समिति गठन की जाएगी |
जन आंदोलनों के राष्ट्रीय समन्वय द्वारा भी एक निगरानी समिति गठित करके, जो साथी चुनावी राजनीति में प्रवेश करेंगे, उनकी जवाबदेही और जन आंदोलनों के उदेश्यों के प्रति कटिबद्धता सुनिश्चित की जाएगी |
इस बैठक में, मेधा पाटकर (नर्मदा बचाओ आन्दोलन- एन ए पी एम्), अरुंधती धुरु एवं चंद्रमुखी यादव (एन ए पी एम्- ऊ.प्र.), आशीष रंजन (जन जागरण शक्ति संगठन, एन ए पी एम् – बिहार), प्रफुल्ल सामंतरा ( लोक शक्ति अभियान, ओडिशा), डॉ सुनीलम ( किसान संघर्ष समिति, मध्यप्रदेश), अखिल गोगोई (के एम् एस एस, असम), दयामनी बारला (आदिवासी मूलवासी अस्तित्व रक्षा मंच, झारखण्ड), सुमित वाजले ( घर बचाओ घर बनाओ, मुंबई), प्रसाद बागवे (एकविरा जमीन बचाओ आन्दोलन, महाराष्ट्र), कैलाश मीना (एन ए पी एम् – राजस्थान), भूपेंद्र सिंह रावत (जन संघर्ष वाहिनी, दिल्ली), विमल भाई (माटू जन संगठन, उत्तराखंड), राजेंद्र रवि, मधुरेश कुमार, सीला (एन ए पी एम्- दिल्ली) शामिल हुए |
23-24 जनवरी को जन आंदोलनों के राष्ट्रीय समन्वय एवं अन्य आंदोलनों की एक बैठक सेवाग्राम, वर्धा में तय हुआ है, जिसमे जन संघर्ष एवं चुनावी राजनीति के विषय में चर्चा की जाएगी |
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