जन आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय
और
इंदौर इंस्टिट्यूट आफ ला
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जन आन्दोलनों क़ी नई लड़ाई में शामिल हो: जस्टिस गांगुली ने युवा वकीलों को किया एलान
“सामाजिक न्याय के पक्ष में वकील” – दो दिवसीय बैठक इंदौर में प्रारंभ
देश के १४ राज्यों से वकील, सामजिक कार्यकर्ता एवं कानून के विद्यार्थी शरीक हुएइंदौर, अगस्त २५ : भारत का संविधान कई वर्षों के जनता के संघर्ष के बाद बना है, जिसे बनाने वाले खुद आज़ादी के संघर्ष में शामिल थे | इस कारण ही हमारा संविधान दुसरे बहुत सारे देशों के संविधान से अलग है | भारत की न्यायपालिका भी उसी संघर्ष की बदौलत है और उसकी जिम्मेदारी है की वह जनता की आज़ादी, अधिकार और इज्ज़त को सुरक्षित रखे, रिटायर्ड जस्टिस और वर्तमान पश्चिम बंगाल मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष अशोक कुमार गांगुली ने सामाजिक न्याय के लिए संघर्षरत वकील, दो दिवसीय राष्ट्रीय गोष्ठी के अपने उदघाटन भाषण में कहा | उन्होंने कहा की न्यायधीशों के लिए अपने वर्ग से बाहर आकार पिछड़े और वंचित लोगों के हित में न्याय देना बहुत ही मुश्किल होता है क्योंकि वह भी इस सामजिक और आर्थिक व्यवस्था के हिस्से हैं | उद्घाटन सत्र में रिटायर्ड जस्टिस पी डी मुले, वरिष्ठ अधिवक्ता अनिल त्रिवेदी, सतीश बगडिया, मधुरेश कुमार और मेधा पाटकर ने शिरकत की |
दो दिविसीय गोष्ठी, अगस्त २५-२६, जन आंदोलनों के राष्ट्रीय समनव्य (एन ए पी एम्) और इंदौर इंस्टीट्यूट ऑफ ला के द्वारा इंदौर इंस्टीट्यूट ऑफ ला के परिसर में आयोजित किया गया है | गोष्ठी की शुरुआत रूपांकन संस्था के अशोक दुबे, पंखुरी किरणप्रकाश आवारा बनाये गए “न्याय के पक्ष में” एक पोस्टर प्रदर्शनी के उद्घाटन के साथ शुरू किया गया | इस गोष्ठी में १४ राज्यों के करीब ५० वकील और सामाजिक कार्यकर्ता शामिल हुए | गोष्ठी में रविकिरण जैन, भगवानजी रयानी, सुधा भारद्वाज, जया मेहता, कल्पना मेहता, एन दी सूर्यवंशी, अनिल त्रिवेदी, एन कलीस्वरम, जयंत वर्मा, शमीम मोदी, इंदिरा उन्निनायर, विनीत तिवारी, गिरीश गोखले और अन्य |
सभा के पहले सत्र में बात रखते हुए इंदिरा और भगवानजी ने कहा की न्याय का देर से मिलना अन्याय के बराबर है | पूरे देश में करीब ३.१९ करोड़ केस लंबित हैं | इन सबको खतम करने में आज की मौजूदा स्थिति में करीब ३०० साल लगेंगे | रविकिरण जैन ने कहा की ग्रामसभा और बस्तीसभा का कानूनन हक है की उनकी सम्मति के बिना कोई भी विकास की परियोजना नहीं लागू हो सकती है, लेकिन फिर भी न्यायलय ने इनके पक्ष में बहुत कम ही अपने निर्णय दिए हैं | सभा में इस बात पर चर्चा हुई की न्यायधीशों की संख्या बढ़ाना, बजट में खर्च बढ़ाना, और एक बहुत ही बृहद तौर पर पूरे कानून व्यवस्था में बदलाव लाने की जरूरत है तभी सही मायने में न्याय की व्यवस्था लागू हो सकती है |
सभा के दूसरे सत्र में बात रखते हुए सुधा भरद्वाज ने कहा की आज देश में बहुत सारे आंदोलनों और आम आदमी को सरकारी दमन का सामना करना पड़ना है क्योंकि वो सरकार की पूंजीवादी नीतियों के खिलाफ आवाज़ उठा रहे हैं | छत्तीसगढ़ में इतनी भयावह स्थिति है की आज बहुत सारे निर्दोष लोग जेलों में कैद हैं बिलकुल बेबुनियादी आरोपों के तौर पर क्योंकि छत्तीसगढ़ सुरक्षा अधिनियम के तहत वे माओवादी हैं या उनके समर्थक हैं | उत्तर पूर्व और जम्मू कश्मीर में बहुत सारे ऐसे लोग ए एफ एस पी ए या राजद्रोह का कानून जैसे कानून के तहत बंद हैं | लेकिन इन परिस्तिथियों में भी न्यायपालिका में न्याय नहीं मिलता | दुर्भाग्य है की बहुत सारी केसों में तो सरकार के कहने पर न्यायपालिका सजा तय करती है और लोगों को न्याय नहीं मिल पता |