सात साल से चली जाॅच के बाद, सरदार सरोवर विस्थापितों के पुनर्वास में फर्जी रजिस्ट्रियों एवम् अन्य कार्यो में भ्रष्टाचार पर भूत. न्या. श्रवण शंकर झा आयोग ने अपनी रिपोर्ट मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायधीश के सामने 4 जनवरी को पेश की। बंद सील के साथ रखी गई इस रिपोर्ट पर आज बहस हुई तो मध्यप्रदेश शासन ने एक अर्जी दाखिल करके यह मांग की कि यह रिपोर्ट सर्वप्रथम विधानसभा के सामने रखी जाए। उन्होने इस अर्जी में कमिशन आॅफ इन्क्वायरी एक्ट, 1952 की धारा 4 का आधार लेते हुए शासन को इस रिपोर्ट की प्रति दी जाकर,शासन ही विधानसभा में पेश करेगी, इस कानूनी प्रक्रिया जिक्र किया है।
नर्मदा बचाओ आंदोलन की और से 21/8/2008 का तथा 12/11/2009 का इसी न्यायालय के आदेशों का हवाला देते हुए कहा गया कि इस आयोग का गठन न्यायालय ने किया है, तथा न्यायालय ने अपने आदेशों में स्पष्ट रूप से कहा है कि रिपोर्ट हायकोर्ट के सामने प्रस्तुत करनी होगी। इस आदेश का गठन संविधान की धारा 226 के तहत उच्च न्यायालय को दिये गये अधिकारों के आधार पर तथा पुनर्वास का अधिकार, जो संवैधानिक धारा 21 के अनुसार जीने का अधिकार ही है, उसे सुरक्षित रखने के लिए हस्तक्षेप जरूरी होते हुए किया गया। इस आयोग के चलते, उन्हें पर्याप्त अर्थसहायता, विशेष जाॅच दल (अधिकार) इन्फ्रास्ट्रक्चर आदि देने के लिए बारबार न्यायालय को ही आदेश करने पडे थे, तथा आंदोलन को शिकायत करनी पडी थी। न्यायालय को ही आयोग की रिपोर्ट पर आगे की कार्यवाही के निर्देश भी देने होंगे। म.प्र. शासन/ न.घा.वि.प्रा. की दलील भ्रष्टाचार उजागर करने देरी के लिए है। मुख्य न्यायाधीश अे. के. खानविलकर और संजय यादव की न्यायपीठ ने आदेश दिया कि आंदोलन से जवाबी शपथ पत्र प्रस्तुत करने बाद 9 फरवरी को सुनवाई होंगी। आंदोलन की ओर से मेधा पाटकर, शासन/न.घा.वि.प्रा. की ओर से अधिवक्ता आर. एन. (भूतपूर्व अधिवक्ता जनरल) एवम् नर्मदा नियंत्रण प्राधिकरण की ओर अधिवक्ता नकवी ने पैरवी की।
राहुल यादव रणवर तोमर मुकेश भगोरिया देवराम कनेरा
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