800 आदिवासी बच्चों का नंदुरबार में चल रहा चार दिवसीय बालमेला |
संघर्ष व निमार्ण के 30 वर्षों का हिस्सा है जीवनशाला |
विविध कलाओं व खेलों का अद्भुत प्रदर्शन |
नंदुरबार | 6 फरवरी, 2016: सरदार सरोवर के महाराष्ट्र व मध्य प्रदेश के डूब क्षेत्र में चल रहीं 9 नर्मदा जीवन शालाओं के 800 आदिवासी विद्यार्थियों का चार दिवसीय बालमेला नंदुरबार में 4 फरवरी को शुरू हुआ है | कार्यक्रम का शुभारम्भ नंदुरबार जिलाधीश ने किया | बालमेला में बच्चों द्वारा खो-खो, कबड्डी, दौड़, तीर कमानी इत्यादी व सांकृतिक कार्यक्रमों जैसे नाटक, नृत्य व संगीत से समां बाँधा | इस वार्षिक बालमेला में मध्य प्रदेश व महाराष्ट्र से कई कलाकार, पत्रकार, सामाजिक कार्यकर्ता, फिल्म निर्माता, विशेषज्ञ अतिथियों के साथ-साथ बड़ी संख्या में आदिवासी पालक भी मौजूद हैं |
आज 6 फरवारी को जीवनशालाएं के बीच में हुई कई स्पर्धाओं के सेमी-फाइनल मैच हुए है और शाम में सांस्कृतिक कार्यक्रमों की स्पर्धा है | कल अंतिम स्पर्धाएं होंगी और जीतने वाली टीमों का पुरस्कार वितरण व समापन समारोह होगा | मेधा पाटकर, समाज सेविका, रमण भाई शाह, वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता; अरविन्द कपोले, राष्ट्र सेवा दल; जयप्रद देसी, पुरस्कार प्राप्त फिल्म निर्माता, जयपाल शिंदे, समाज कार्य महाविद्यालय, तलोदा, विद्याधर भिड़े व माधव लांगडे विशेष अतिथि के रूप में मौजूद रहेंगे |
कल का कार्यक्रम इस प्रकार है :
क्रमांक | समय | कार्यक्रम |
1. | 9 बजे से | अंतिम स्पर्धाएं |
2. | 3 बजे | विजयी सांस्कृतिक कार्यक्रमों की प्रस्तुति |
4. | 4 बजे | पुरस्कार वितरण व समापन समारोह |
सरदार सरोवर पहाड़ी आदिवासी डूब क्षेत्र में आजादी के बाद भी शिक्षा का कोई नामोनिशान नहीं था | शासकीय विद्यालय सिर्फ कागजों पर ही चलते थे | 15 अगस्त व 26 जनवरी को सरकारी शिक्षक, अप्रचलित शासकीय विद्यालयों में झंडा फहराने आते थे | सन 1992 में नर्मदा बचाओ आंदोलन के सत्याग्रह के दौरान लोग जब बैठते थे, तभी काफी समय हुआ करता था, तो सत्याग्रह में मौजूद आदिवासी व निमाड़ के लोगों ने पहाड़ी आदिवासियों को नाम लिखना व हस्ताक्षर करना सिखाया, तब लगा की यहाँ शिक्षा होनी ज़रूरी है | आदिवासियों में भी लिखाई-पढाई की रूचि जागी जिसे आगे बढाते हुए आन्दोलन के हस्तक्षेप सेनर्मदा जीवनशाला (विद्यालयों) का आविष्कार किया | आंदोलन के लोगों ने आदिवासी गांव वालों के साथ तय किया की गाँव के अन्दर जीवनशाला खोली जाएगी | आखिरकार सन 1992 में महाराष्ट्र सरदार सरोवर डूब क्षेत्र के ज़िला अक्कलकुवा के चिमलखेड़ी नामक पहाड़ी आदिवासी गाँव में पहली जीवनशाला की शुरुवात हुई | आगे चल कर जीवनशाला मध्य प्रदेश , महाराष्ट्र एवं गुजरात में कई जीवनशालाएं खुली |
जीवनशाला, नर्मदा बचाओ आंदोलन के नवनिर्माण के कार्यों का महत्वपूर्ण पहलु है | यहाँ पर शिक्षा देने का एक उद्देश्य लोगों को उनके अधिकारों से जागृत कराना भी है ताकि आने वाले समय में वह अन्याय के पीड़ित न बन सके, जैसे कि सरदार सरोवर जैसी विनाशकारी परियोजना के कारण उन्हें अपनी जल-जंगल-ज़मीन के वंचित होना पड़ा, उनकी सहमती के बिना ! जीवनशाला के भवनों का निर्माण आदिवासियों के सहयोग से हुआ जिसे बह लकड़ी व मिट्टी की मदद निर्माण करते है | शुरुआत में बच्चो के माँ-बाप थोड़ा-थोड़ा अनाज बच्चो के साथ भेजते थे और वहीँ रुकने को बोलते थे यह सिलसिला चलता गया और जीवनशाला विद्यालयों ने निवासिय विद्यालयों का रूप ग्रहण किया | अब तक कुल सरदार सरोवर डूब क्षेत्र में 14 जीवनशालाएं आरंभ हुई परन्तु कुछ गाँवों का पुनर्वास होने के कारण, पुनर्वास स्थलों में संयुक्त जीवनशालाएं खोली गयी और अब कुल 9 जीवनशालाएं है | यहाँ पहली से चौथी कक्षा तक शिक्षा दी जाती है | जहाँ तक जीवनशालाएं चलाने की लिए संसाधनों की बात है, यह सब निमाड़ (मध्य-प्रदेश) के डूब क्षेत्र के किसानों के सहयोग से व देश भर के समर्थक साथियों के सहयोग से मुमकिन होता है | आदिवासी शिक्षक तथा आदिवासी कामठी व अन्य कार्यकर्ता व्यवस्थापन में जुटी हुए है | हर गाँव की एक देख-रेख समीति बनी है जो व्यवस्थापन देखती है | 20 साल के बाद राज्य-सरकार ने मान्यता दी है परन्तु आजतक अनुदान मंज़ूर नहीं किया है | उपलब्धियों की बात करें तो इतने सिमित संसाधन, आदिवासी बच्चो की प्रतिभा को बाहर निकालने में कभी रुकावट नहीं बने | 15 बच्चे क्रीडा-प्रबोधिनी में विशेष शिक्षा ले लेकर राष्ट्रीय खिलाड़ी बन रहे है, और पदक प्राप्त करते है जैसे गुलाबसिंह वसावे ने अब तक 17 स्वर्ण पदक जीते है उसी प्रकार खुमान पटले महाराष्ट्र राज्य की हॉकी टीम के बेस्ट गोल कीपर बने | 5000 से अधिक बच्चे जीवनशालाओं में शिक्षा ग्रहण कर चुके है | इस प्रकार नर्मदा बचाओ आंदोलन का निर्माण व संघर्ष का कार्य साथ—साथ चलता है |
योगिनी खानोलकर लतिका राजपूत चेतन साल्वे विजय वलवी भागीरथ कव्चे
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