नागपुर | फरवरी 06, 2017: एनएपीएम के 11वें राष्ट्रीय अधिवेशन के बाद आज राष्ट्रीय बैठक में अस्तिव, अस्मिता और अधिकार की लड़ाई आगे बढ़ाते हुए कॉर्पोरेटीकरण, साम्प्रदायिकता और जातिवाद मुक्त भारत बनाने के लिए सशक्त अभियान का एलान किया। राष्ट्रीय बैठक में राष्ट्रीय और राज्य के समन्वयकों ने संघर्ष और संगठनात्मिक विस्तार पर गहन चर्चा करते हुए राज्यों में जिला स्तर तक विस्तार के लिए विस्तृत योजना बनायीं तथा जिलों में समितियां बनाकर अन्य संगठनों को जोड़ने की प्रक्रिया की रूपरेखा तैयार की। पूरे दो दिन की बैठक में कई महत्वपूर्ण मुद्दों पर बात हुई और फैसले लिए गए। इस वर्ष पेश हुए बजट से कोई अच्छे दिन नहीं आने वाले है। विकास के मूलभूत प्रश्नों को दरकिनार करते हुए सरकार हर क्षेत्रों में निजी कंपनियों और कॉर्पोरेटीकरण को बढ़ावा दे रही है। जिसके कुछ बिंदु निम्नलिखित हैं –
– मनरेगा में हुए बढ़ोतरी का ज्यादा हिस्सा पहले के बकाये पर खर्च हो जाएगा।
– कृषि विकास के नाम पर आधारभूत सुविधायें और सहयोग करने के बजाये फसल बीमा योजना सिर्फ एक छलावा है। पूरे देश में किसानों पर औसतन ४७,००० का क़र्ज़ है और इसको हल करने के बजाये और क़र्ज़ देने के प्रावधान किसानों को और कर्ज़दार बनाते है जिससे वो आत्महत्या की तरफ जा रहे हैं। किसानों को और कर्ज़दार बनाकर पूरे देश में विदर्भ जैसी स्तिथि लाना चाहती है सरकार।
– पारदर्शिता के नाम पर लाये गए इलेक्टोरल बांड और २०००० से कम करके 2000 करने से कोई अंतर नहीं आने वाला है, सरकार ऐसा RTI कानून से बचने के लिए कर रही है
– बजट में शिक्षा – 3.7%, स्वास्थ्य – 2.2%, महिला बाल विकास – 1%, शहरी विकास – 1.5%, ग्रामीण विकास – 5.2%, कृषि – 2.4% का नियोजन से साफ़ पता चलता है कि सरकार का विकास के मूलभूत प्रश्नों पर क्या इरादे हैं।
– इसके इतर रक्षा में होने 12.7% का नियोजन हमारे शांति और सद्भावना के उद्देश्यों के खिलाफ दिखता है और पड़ोसी देशों से तनाव को बढाता है।
– इस बजट में बेरोजगारी, महंगाई और किसान की आय दुगुना करने के कोई ठोस उपाय नहीं दिखाई देती है।
– आदिवासी क्षेत्रों से स्वास्थ्य केन्द्रों को ख़तम करने के पीछे सरकार तेजी से काम कर रही है, जिसके कारण महाराष्ट्र में कुपोषित बच्चों के पोषण के लिए आदिवासी क्षेत्रों में केंद्र बंद होते हुए अब 5 से कम रह गए हैं।
भारत में अन्य कई हिस्सों में होने वाले दमन और शासकीय हमलों पर एनएपीएम की राष्ट्रीय बैठक में गंभीर चर्चा करते हुए अभी छत्तीसगढ़ में हो रहे पुलिसिया दमन और सरकारों की मनमानी जिसमें आदिवासियों के ऊपर हो रहे दमन, सामजिक कार्यकर्ताओं और संसाधनों की कॉर्पोरेटी लूट के खिलाफ कार्य करने वालों के ऊपर हो रहे हमले के विरोध में एनएपीएम अन्य समनव्यों और साथी संगठनों के साथ लगातार आगामी आने वाले महीनों में वहाँ के संघर्षों के समर्थन में छत्तीसगढ़ जायेंगे।
इस साल 8 जनवरी को मुंबई में हुए शहरों के सवालों पर राष्ट्रीय बैठक में गरीब और बस्तियों के विकास के नाम पर सरकारों, कॉर्पोरेट द्वारा जमीन की लूट हो रही है, बेरोजगारी और अलोकतांत्रिक व्यवस्था बढ़ती जा रही है। इन के साथ अन्य मुद्दों को लेते हुए एनएपीएम द्वारा राज्य स्तरीय बैठक का आयोजन अन्य साथी संगठनों के साथ मिलकर किया जाएगा। मार्च के महीने में ओडिशा और पश्चिम बंगाल में बैठक होगी और संसद के मानसून सत्र के समय राष्ट्रीय बैठक का आयोजन होगा। मुंबई शहर के एस.आर.ए. का दिल्ली में कठपुतली कॉलोनी के अन्दर हो रहे जबरन विस्तार का एनएपीएम और शहरों के मुद्दे पर काम करने वाले अन्य साथी जोरदार विरोध करते है और कठपुतली कॉलोनी में चल रहे जमीन के लिए संघर्ष का समर्थन करती है।
पिछले नवम्बर से चल रहे नोटबंदी के प्रभाव के ऊपर भी गहन समीक्षा हुई और जन आंदोलनों के अनुभवों के आधार पर बैठक में यह नतीजा निकला कि किसानों की आय लगभग 50% कम हुई है, करीब 50 लाख संगठित और असंगठित मजदूर बेरोजगार हुए, छोटे और कुटीर उद्योग हुए सबसे ज्यादा प्रभावित, और कम से कम 2% आर्थिक मंदी आ चुकी है, जो कि बिलकुल ही जनविरोधी साबित हुई है। एनएपीएम इस दौरान लगभग १०० लोगों की हुई मौत की जिम्मेदार सरकार को मानती है और नोटबंदी के उद्देश्य पर सवाल उठाते हुए सरकार से नोटबंदी के असर पर वाइट पेपर की मांग करती है।
राष्ट्रीय बैठक में तय किये गए कार्यक्रम:
– संगठन विस्तार के लिए आने वाले तीन महीनों में चलेगा अभियान
– युवाओं को देश के विकास और संघर्ष के मुद्दों से जोड़ने के लिए होगा युवा संवाद
– शहरी विकास के नाम पर हो रही जमीन की लूट और बढ़ती बेरोजगारी के विरोध में राष्ट्रीय स्तर पर जमीन, आवास और आजीविका के लिए चलेगा अभियान
– औद्योगिक कॉरिडोर के नाम पर हो रही संसाधनों की लूट और लोकतांत्रिक अधिकारों के हनन के खिलाफ कॉरिडोर विरोधी संघर्ष अभियान के बैनर तले चलेगा संघर्ष