प्रेस विज्ञप्ति
जंतर मंतर, नई दिल्ली, 23.08.2012
सर्वदलीय स्थायी समिति के सदस्य एवं राजनैतिक दलों के सांसदों ने धरना स्थल पर आकर दिया समर्थन.”
“जनतंत्र की शक्ति का मूल स्रोत जनता है, सरकार बाद में आती है –डॉ. दिलीप सिंह भूरिया”
भूमि-अधिग्रहण और पुनर्वास व पुनर्स्थापन अधिनियम 2011, के विरोध में ‘संघर्ष’ द्वारा आयोजित ‘जन मोर्चा’ के तीसरे दिन भी दूर-दराज़ के क्षेत्रों से आये ग्रामीण किसानों और आदिवासियों का उत्साह बरकार है. उनका कहना है कि ‘दिल्ली आकर उन्होंने सत्ता का असली चेहरा देख लिया है’. उल्लेखनीय है कि ग्रामीण विकास मंत्रालय से कई बार आग्रह किये जाने के बावजूद, इन ग्रामीणों के जीवन-मरण के प्रश्नों के प्रति गैर-ज़िम्मेदारी दिखाते हुए, मंत्रालय की ओर से न तो आंदोलन के साथियों से मिलने का समय नहीं दिया और न ही अपने किसी प्रतिनिधि को धरना स्थल पर भेजा.
धरने के तीसरे दिन डॉ. बी.डी. शर्मा, सांसद एवं अनुसूचित जाति व जन जाति आयोग के पूर्व अध्यक्ष डॉ. दिलीप सिंह भूरिया, राज्य सभा सांसद श्री ए.व्ही.स्वामी, केरल से भारतीय कम्मुनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) के सांसद कामरेड पी.राजीवे, मुंबई में मलाड के कांग्रेस सांसद संजय निरुपम ने अपना समर्थन दिया.
इसी क्रम में डॉ. बी.डी.शर्मा ने अपने संबोधन में कहा कि – “आदिवासी कभी गरीब नहीं था, और न है, उसे गरीब बनाने की साजिशें रची जा रहीं हैं जिन्हें करार जवाब दिया जाना चाहिए. अधिकार, भीख नहीं हैं, हम इन्हें मांगने नहीं, इनका उपयोग करने का संकल्प लें”.सरकार को यह समझना चाहिए कि जो संपदा उसने नहीं बनाई उसे अधिग्रहीत करने का कोई हक उसे नहीं है.
ओडीशा से निर्दलीय सांसद श्री ए.व्ही.स्वामी ने कहा कि “अंग्रेजों के बनाये हुए इस कानून का जनतांत्रिक समाज में कोई स्थान नहीं है. हम इस काले कानून का घोर विरोध करते हैं.” आजादी की लड़ाई में सक्रिय भूमिका निभाने वाले श्री स्वामी ने इस सरकार को अंग्रजों से भी बदतर सरकार करार दिया.
सांसद डॉ. दिलीप सिंह भूरिया ने कहा कि “प्राकृतिक संसाधनों पर पहला और अंतिम अधिकार उन आदिवासियों और ग्राम समाज का है जो उसे सदियों से बचाए हुए हैं, ग्राम सभा की सहमति के बिना उनको प्रभावित करने वाला कानून बनाना उनके खिलाफ गंभीर अपराध है. इस पूरी व्यवस्था के केंद्र में लोग पहले हैं, सरकार उसके बाद आती है.” सरकार को होश में लाने के लिए संसाधनों और अपने अस्तित्व को बचाने की यह लड़ाई अपने-अपने क्षेत्रों में जोश के साथ लड़ने की ज़रूरत है.
गुमान सिंह ने आज के राजनैतिक हालातों पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि इतिहास के इस दौर में जन आन्दोलनों का नया रूप देखने मिल रहा है जहां जनता अपनी लड़ाई खुद लड़ रही है, किसी भी राजनैतिक दल की कोई स्पष्ट राजनीति दिखाई नहीं देती. प्राकृतिक संसाधनों की इस लड़ाई को राजनैतिक दलों का भी पुन: राजनैतिकरण करने की जिम्मेदारी है. उन सभी दलों को देश की जनता के प्रति अपनी प्रतिबद्धतता पर गंभीर रूप से विचार करना चाहिए.
कॉमरेड पी राजीवे जो संसदीय कार्य समिति के सदस्य भी रहे हैं, ने कहा कि संसदीय समिति ने सरकार को कई जनपक्षीय सुझाव दिए; जबकि ग्रामीण मंत्रालय संसदीय समिति की बात को नहीं मानते हुए एक दूसरे बिल को ही सामने ला रही है. प्राय: दुनिया के कई दूसरे देशों में संसदीय समिति के सुझावों की अवमानना नहीं हो सकती. हमारे देश में संसदीय समिति के सुझावों की अवमानना होती है. सुझावों के अंतर्गत हमने स्पष्ट रूप से कहा था कि जन-हित के नाम पर बहुत ज्यादा भूमि अधिग्रहण होता है, उसे रोकना चाहिए. साथ ही साथ भूमि अधिग्रहण के मुद्दे से जुडते हुए पूरे देश के अंदर सोलह कानून हैं, उसके तहत भूमि अधिग्रहण को भी इसी बिल के भीतर आना चाहिए. अभी ग्रामीण विकास मंत्रालय ने 16 में से सिर्फ 3 कानूनों को ही इसके भीतर शामिल किया. इस बिल में पीपीपी के खिलाफ भी संसदीय समिति ने बात कि थी. कोयला घोटाला, २ जी घोटाला जैसे बड़े घोटाले इसी पीपीपी की ही देन हैं.
मुंबई के ‘घर बचाओ घर बनाओ’ आन्दोलन के कार्यकर्ता जमील भाई ने कहा कि ‘ जब कि मुंबई के 60 प्रतिशत लोग बस्तियों में रहते हैं तो विकास के नाम पर उनका विस्थापन क्यूँ? वन अधिकार कानून के तर्ज़ पे इन बस्तियों में रहने वाले लोगों को उसी जगह रहने दिया जाये जहाँ वह रहते हैं | और उनका विकास वहीँ किया जाये शहरी गरीबों को भूमि आरक्षण दिया जाये | जब संसद भूमि- अधिकार कानून बनाये तब शहरी गरीबों के भू- अधिकार को नज़र अंदाज़ न करे|
इस तीन दिवसीय जन मोर्चा का समापन के अवसर पर इस मुद्दे पर अपने अपने क्षेत्रों में आंदोलन तेज करने की रणनीति के साथ, जंतर मंतर से संसद मार्ग तक मशाल जलाकर रैली के साथ हुआ.
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संघर्ष के साथी
मेधा पाटकर– नर्मदा बचाओं आंदोलन व जनआन्दोलनो का राष्ट्रीय समंवय (एनएपीएम); अशोक चौधरी, मुन्नीलाल – राष्ट्रीय वनजन श्रमजीवी मंच (NFFPFW); प्रफुल्ल सामंत्रा – लोक शक्ति अभियान, एनएपीएम, ओडिसा; रोमा, शांता भटाचार्य, कैमूर क्षेत्र महिला मजदूर किसान संघर्ष समिति, उप्र – NFFPFW; गौतम बंधोपाध्याय – नदी घाटी मोर्चा, एनएपीएम, छत्तीसगढ़; गुमान सिंह – हिम नीति अभियान, हिमाचल प्रदेश; उल्का महाजन, सुनीती एस आर, प्रसाद बागवे – सेज विरोधी मंच और एनएपीएम, महाराष्ट्र; डा0 सुनीलम्, एड0 अराधना भार्गव – किसान संघर्ष समिति, एनएपीएम, मप्र; गेबरियेला डी, गीता रामकृष्णन – पेरिनियम इयक्कम् और एनएपीएम, तमिलनाडु; शक्तिमान घोष – राष्ट्रीय हाकर फैडरेशन, एनएपीएम; भूपेन्द्र रावत, राजेन्द्र रवि, अनीता कपूर – जनसंघर्ष वाहिनी और एनएपीम, दिल्ली; अखिल गोगाई – कृषक मुक्ति संग्राम समिति, एनएपीएम, आसाम; अरुंधती धुरु, संदीप पाण्डेय – एनएपीएम, उप्र; सिस्टर सीलिया – डोमेस्टिक वर्कर यूनियन, एनएपीएम, कर्नाटक; सुमीत बंजाले, माधुरी शिवकर, सिंप्रीत सिंह – घर बचाओ, घर बनाओ आंदोलन, एनएपीएम, मुंबई; माता दयाल – बिरसा मुंडा भू अधिकार मंच, मप्र (NFFPFW); डा0 रुपेश वर्मा – किसान संघर्ष समिति, एनएपीएम, उप्र; मनीष गुप्ता – जन कल्याण उपभोक्ता समिति, एनएपीएम, उप्र; विमलभाई – माटू जनसंगठन, एनएपीएम, उत्तराखंड; बिलास भोंगाडे – गोसी खुर्द प्रकल्प ग्रस्त संघर्ष समिति, एनएपीएम, महाराष्ट्र; रामाश्रय सिंह – घटवार आदिवासी महासभा, एनएपीएम, झारखण्ड; आनंद मजगांवकर, पर्यावरण सुरक्षा समिति, एनएपीएम, गुजरात; रजनीश, रामचंद्र राणा, कदम देवी, थरू आदिवासी एवं तारे क्षेत्र महिला मजदूर किसान मंच, उप्र | ——————————
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