सर्वोच्च अदालत के आदेश के बाद भी सरदार सरोवर पुनर्वास की प्रक्रिया में भी धांधली
विस्थापितों की ओर से आपत्तियां, शिकायतें प्रलंबित
बिना पुनर्वास डुबोना अवमानना होगी
सरदार सरोवर (नर्मदा) के विस्थापितों को सर्वोच्च अदालत ने किसानों को 2 हेक्टेयर जमीन की पात्रता के बदले 60लाख और फर्जीवाड़े में फसाये गए किसानों को 15 लाख रूपये का लाभ देने का आदेश 8.2.2017 के रोज दिया। उस पर अमल करने के निर्देश भी दिये गए हैं तथा साथ –साथ 31.7.20.17 तक विस्थापितों ने अपनी भूमि छोड़ने का आदेश भी है। सवाल यह है कि पुनर्वास एक पूर्वशर्त होते हुए क्या इस अनोखे आदेश का पालन हो रहा है या नही? यहबात पिछले 3 महीनों की प्रक्रिया औरनिर्णयों से साबित होती है। इस प्रक्रिया में कितनी सारी गड़बड़ियाँ हैं, यह कुछ मुद्दों, उदाहरणों से साबित होता है :
- सबसे पहले राज्य शासन व नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण के सर्वोच्च अदालत में पेश किये आंकड़ों में धांधली है। 681 परिवारों को 60 लाख रु. का लाभ सर्वोच्च अदालत ने ‘अंदाजित आंकड़ा’ मानकर जाहिर किया, लेकिन वह परिपूर्ण नहीं है। इतना ही नहीं तो न.घा.वि.प्रा. ने आज तक लाभार्थियों की सूची तैयार नहीं की है। 608 परिवारों की अंदाजित और ‘कभी भी बदल सकेंगी’यह कहते हुए जो सूची सूचना के अधिकार के तहत हमें दी गयी, उसके आगे आज तक कोई प्रगति नहीं ।
- दैनिक भास्कर में पहला हिस्सा कहकर प्रकाशित सूची में और ही गड़बड़ी है। सूची में दोनों वर्ग के (60 लाख के तथा 15 लाख) के लाभार्थी मिलजुलकर प्रकाशित सूची किस आधार पर बनायीं गयी, यह समझ के पार है । जानबूझ कर ऐसी आधी अधूरी सूची घोषित करने का एकमात्र कारण है, दलालों को चांदी कमाने में मददगार होकर अधिकारियों से विस्थापितों को और भी परेशान करना ।
- शि.नि.प्रा. के समक्ष आजतक कुछ हजार विस्थापित परिवारों के आवेदन प्रलंबित होते हुए भी शि.नि.प्रा. ने अभी तक उनका निराकरण बाकी रखकर भुगतान की प्रक्रिया 3 मई तक ही चलेगी यह सूचना सचिव , शि.नि.प्रा. के द्वारा प्रकाशित की गयी। यह सूचना में जबकि कोई तथ्य नहीं है, क्योंकि सर्वोच्च अदालत के फैसले में भी 8 मई तक भुगतान पूर्ण किया जाए यह कहते हुए शासकीय आंकड़े में छोड़े गए विस्थापितों के दावे पर भी शि.नि.प्रा. आदेश देता है, साथ ही पुनर्वास स्थलों सम्बन्धी शिकायतों पर भी शि.नि.प्रा. ने न.घा.वि.प्रा. को आदेश देना है ताकि न.घा.वि.प्रा. पुनर्वाहसटो पर कार्य करके विस्थापितों का पुनर्वास संभव बनाये । इसके लिए 8 मई तक शि.नि.प्रा के आदेश होने हैं। विस्थापितों से एकाध महीने में ही शिकायत दाखिल करवाने के बाद आजतक कार्यवाही नहीं, शिवाय इसके कि न.घा.वि.प्रा. को 2 महीने में कार्य पूरा करने के लिए कहकर शि. नि. प्रा ने रिपोर्ट मांगी है। क्या 88 पुनर्वास स्थलों के सैकड़ों निर्माण कार्य (पानी,रस्ते,विकास) 31 जुलाई के पहले पूरे होंगे? जबकिइसकार्य के टेंडर्स बडवानी के ठेकेदारों को अभी –अभी प्राप्त हुए हैं।
- सबसे बड़ा घोटालापात्रविस्थापितों की पात्रता होते हुए भी एक- एक कारण दिखाकर 60 लाख की पात्रता होते हुए भी उसमें एक –एक कारण से कटौती की जा रही है ।
इसके उदाहरण कई हैं :
- ग्राम कोठडा के ओंकार पिता टूटा ने SRP स्वीकारी और सही जमीन खरीद ली । 17 एकड़ जमीन डूब में होते हुए वह13 एकड़ ही खरीद पाए। अब उनके वयस्क पुत्र लक्षमण पिता ओंकार को स्वतन्त्र प्रभावित के रूप में 2 हेक्टेयर कृषि भूमि की पात्रता है। लक्ष्मण पिता ओंकार के पास कोई जमीन नहीं थी इसलिए उन्हें मात्र वयस्क पुत्र के ही लाभ मिल सकते हैं । उनका बेटे के रूप में 60 लाख रुपये का हक़ बना होते हुए ता.4.5.2017 के रोज उन्हें उनके पिता ओंकार को 3,73,452 रुपये अधिक दिये गए थे, इस कारण पर उतनी राशि काटकर 60 लाख रुपये के बदले लक्ष्मण को 56,26,548 रुपये भुगतान किया गया । कानूनन किसी को अधिक पैसा दिया गया तो उसकी वापसी, कायदेसे नोटिस देकर, प्रक्रिया के बाद ही करनी चाहिए, स्वतंत्र अधिकार वाले प्रभावित से नहीं । और तो और,कोई प्राधिकरण सेकोई स्पष्टता तक नहीं देते हुए लाभ राशि में कटौती बिल्कुल ही गलत और अन्यायपूर्णनहीं है ?
- कुछ केसों में 3 विस्थापित परिवारों की एक साथ और एक ही जगह फर्जी रजिस्ट्री हुयी थी तो उनके स्वतंत्र अधिकार( जमीनया डूब में आ रही जमीन के बदले अभी के सर्वोच्च अदालत के नए पैकेज के अनुसार लाभ ) मंजूर ना करते हुए, तीनों को एक ही यूनिट/इकाई मानकर एक तिहाई लाभ दे रहे हैं। यह पूर्णतः गैरकानूनी है ।
- एक अन्य उदाहरण में, शि. नि. प्रा. द्वारा और न. घा. वि. प्रा. मिलकर शुरुआत में 60 लाख में से मुआवजा( भूअर्जन कानून के तहत) एवं SRP की एक क़िस्त भी काट रहे थे जिस पर आपत्ति उठाने पर ‘ मुआवजा की राशि काटी नहीं जाएगी’ यह निर्णयपत्र द्वारा शि.नि. प्रा. ने हमें दिया। एक किश्त की राशि भी काटना अनुचित है, सर्वोच्च अदालत के फैसले के खिलाफ है, यह बात पर आपत्ति के साथ उन विस्थापितों ने फैसला स्वीकारकरनातय किया।लेकिन दयाराम, मायाराम व फ़ाटूसुक्या के प्रकरण में शि.नि.प्रा./न.घा.वि.प्रा. ने फिर मुआवजा राशि की भी कटौती की है , यह घोर अवहेलना नहीं है क्या?
इसके साथ एक बड़ा समुदाय महिला खातेदारों का है, जिनके हक हाईकोर्ट में मंजूर किये जाकर, GRA ने उनके पक्ष में दिये आदेश हाई कोर्ट ने सही ठहराए हैं। फिर भी उन्हें इस वर्ग की हर महिला को नया दावा दाखिल करने को मजबूर कर रही है न. घा. वि. प्रा. औरशि. नि. प्रा. भी। आजतकइसवर्ग की कई महिलाएं बिना कारण वंचित रखी गयी हैं । यह नहीं हो सकता किन्तु हो रहा है और पुनर्वास बांकी है ।
इस परिस्थिति में 9 मई के रोज NCA क्या निर्णय लेगी? पुनर्वास बाकी या अधूरा होते हुए भी, इस अनुसूचित जनजाति क्षेत्र के आदिवासियों को जलप्रलय से उजाड़ना अन्याय ही नही, अत्याचार है । बाँध के गेट्स बंद करके, किसानों के साथ, जिन्हें दूसरी आजीविका नहीं मिली है, ऐसे विविध व्यवसायों में लगे भूमिहीनों को भी उजाड़ना कैसा न्याय होगा? आन्दोलन ने शि.नि.प्रा. से इन तमाम मुद्दों पर निर्णय लेने का आग्रह किया है । सर्वोच्च अदालत के आदेश के बाद की प्रक्रिया भी न्यायपूर्ण हो इसकी अहम जिम्मेदारी शि.नि.प्रा की ही है ।
धनराज बिलाला, भूपेंद्र मारू, रोहित ठाकुर, राहुल यादव,, मेधा पाटकर,