नई दिल्ली, 31 अगस्त 2016: जन आन्दोलनों का राष्ट्रीय समन्वय (एनएपीएम), 2006 में पश्चिम बंगाल सरकार के द्वारा टाटा मोटर्स फैक्ट्री के लिए किये गए जबरन 1000 एकड़ भूमि अधिग्रहण को खारिज करने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत करता है। न्यायमूर्ति वी. गोपाला गौड़ा और न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा की पीठ के द्वारा सुनाया गया फैसला, कि अधिग्रहित ज़मीन उसके भूस्वामियों को वापस लौटाई जाये। यह फैसला लोगों के जबरन भूमि अधिग्रहण तथा सार्वजनिक उद्देश्य के नाम पर मुनाफाखोरी के संघर्ष के लम्बे इतिहास में एक नया अध्याय जोड़ता है। 2006 में सिंगुर ने तब लोगों के सामूहिक संघर्ष को एक नयी दिशा दी जब विशेष आर्थिक क्षेत्र (SEZ) के खिलाफ प्रतिरोध अपनी गति पकड़ रहा था।
हम उन सभी सिंगुर के किसानों को बधाई देते हैं जिन्होंने 10 सालों तक कानूनी लड़ाई जारी रखी और तृणमूल कांग्रेस की सरकार के सहयोग से दबाव बनाये रखा। हम न्यायमूर्ति जस्टिस गौड़ा की टिप्पणी जिसमें उन्होंने कहा कि निजी कम्पनियों के कार संयंत्र बनाने के लिए भूमि अधिग्रहण सार्वजनिक उद्देश्य के अंतर्गत नहीं आता है तथा इन 10 वर्षों में आजीविका के अवसर से वंचित किसानों को मुआवजा लौटाने की ज़रूरत नही है, इस बात का भी स्वागत करते हैं। साथ ही उनका यह कथन हमारी विचारधारा तथा सालों से चल रहे संघर्षों और इन मुद्दों पर हमारे दृष्टिकोण का समर्थन करता हुआ दिखता है।
2013 के नये भूमि अधिग्रहण कानून बनने के बाद, सरकारें इस कानून को दरकिनार कर अलग अलग तौर तरीकों से निजी कंपनियों के लिए जमीन ले रही है, सहमति की धारा तथा सामाजिक प्रभाव के आंकलन की ज़रूरत को भी ख़ारिज करते हुए सिर्फ नकद मुआवजे तक ही सीमित रखते हुए भूमि अधिग्रहण कर रही है। राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) सरकार लगभग तीन बार निजी कंपनियों के लिए भूमि का अधिग्रहण करने तथा सार्वजनिक उद्देश्य के नाम पर मुनाफाखोरी करने के उद्देश्य से 2013 के कानून में संशोधन करने हेतु अध्यादेश प्रस्तुत कर चुकी थी। जहाँ कोई भी मुनाफाखोरी की परियोजना को सार्वजनिक उद्देश्य के लिए न्यायसंगत ठहराया जा रहा था, वहीँ आज का सुप्रीम कोर्ट का फैसला फिर से सरकार की विकासनीति को झूठलाता और जन विरोधी साबित करता हुआ दिखाता है। सुप्रीम कोर्ट में दोहराया गया – सार्वजनिक उद्देश्य तथा राष्ट्र विकास के नाम पर, निजी कंपनियों के लाभ के लिए कोई भी ज़बरन भूमि अधिग्रहण स्वीकार्य नही होगा और यह पूरी तरह से किसान विरोधी,जनविरोधी और असंवैधानिक भी है।
आज भूमि अधिकारों की रक्षा तथा देशभर में जबरन भूमि अधिग्रहण के विरोध में वाम पार्टियों के जन संगठन भी जन आंदोलनों के साथ आये और अन्य सामुदायिक संस्थाओं के समर्थन और एकता से वर्तमान सरकार द्वारा प्रस्तावित 2013 भूमि अध्यादेश की हार हुई और तो और सिंगुर के किसानों को भी पश्चिम बंगाल सरकार का समर्थन मिला तथा वाम पार्टी भी लोगों के इस आन्दोलन में आज साथ खड़ी है। ऐसी स्तिथि में हम ये आशा करते हैं कि पश्चिम बंगाल से एक सामूहिक सहमति और जनकेंद्रित विकास के एजेंडों तथा औद्योगीकरण के लिए उभर कर आये, जहाँ कामगारों, आदिवासियों तथा किसानों का हित मुख्य केंद्र हो ना कि संसाधनों की कॉर्पोरेट लूट।
हम फिर से एक बार सिंगुर के किसानों को उनके साहसी संघर्ष के लिए बधाई देते हैं।
मेधा पाटकर, समर बाग्ची, प्रफुल्ला सामंतरा, डॉ. सुनीलम, अमिताव मित्रा, गौतम बंदोपाध्याय, भूपेंद्र सिंह रावत, मधुरेश कुमार