नर्मदा घाटी के कुछ हजार विस्थापितों ने फिर शुरू किया सत्याग्रह, बड़वानी में।
सर्वोच्च अदालत के आदेश के लाभ लेकर, जमीन, जीविका से ही पूर्ण पुनर्वास।
अन्याय, अत्याचार और भ्रष्टाचार से भरा विकास नामंजूर। बड़वानी ।
05/03/2017 : सरदार सरोवर विस्थापितों के पुनर्वास के मुद्दों पर सर्वोच्च अदालत ने 08.02.2017 के रोज दिये आदेश के बाद भी हजारो विस्थापितों ने तय किया और बड़वानी में आज अपना डेरा डाल दिया। आज भी बड़वानी, धार, खरगोन और अलिराजपुर भी मिलकर 244 गांव और एक नगर, धरमपुरी भी डूब में होते हुए, सभी पुनर्वास के अधिकारों को हासिल किये बिना अपनी जमीन, जीविका, नर्मदा भी छोड़कर भागने वाले नहीं है, यह संकल्प व्यक्त करने के लिए सत्याग्रह शुरू हुआ है। म0प्र0 के डूब क्षेत्र में बसे 2.5 लाख लोगो की न्याय दिलाने का यह संकल्प है। सर्वोच्च अदालत के भारत के मुख्य न्यायाधीश श्री खेहार, न्या. चंद्रचूड और न्याय. रमण्णा की खंडपीठ ने मध्यप्रदेश शासन का दावा कि ‘‘सबका पुनर्वास हो चुका है और अब कुछ बाकी नही’’ और ‘‘नर्मदा बचाओ आंदोलन’’ की याचिका खारिज करनी होगी’ ये नकारे जाकर 5.5 लाख के बदले, 2 हेक्टर जमीन का हक रखने वाले हर किसान को 60 लाख रू का और जमीन के बदले नगद राशि के अनुदान से मात्र 50 प्रतिशत राशि लेकर जमीन का आग्रह रखने वाले परिवार को भी 60 लाख रू का लाभ देना मंजूर किया है। फर्जी रजिस्ट्री में फंसे विस्थापितो को भी म0प्र0 शासन, अधिकारियें को बचाकर जेलो में भेज रही थी, उसे रोककर 15 लाख रू देने का आदेश दिया। गुजरात शासन को इस कारण सैकड़ो करोड़ रू देना होगा, आज तो म0प्र0 शासन ने जिन्हें लाभ मिलेगा, उनकी संख्या और सूची भी जाहीर नहीं की है। उन्होने आज तक की अपारदर्शी प्रक्रिया और पद्वती छोड़कर यह सूची जाहीर करना जरूरी है। पुनर्वास स्थलों पर सुविधाऐं तैयार नहीं है। कही काली कपास की मिटटी में घर बांधना असंभव है, कही बड़े गढढे और असमतल भूमी है तो बहुत से स्थलों पर पीने का पानी तक पर्याप्त नही है, तो मकान निर्माण के लिए कहां? दलालों और बड़ी कमाई करने वाले, फसानेवाले कुछ वकीलो ने अधिकारियें से गठजोड़ करके अपनी चांदी कमाने, गंरीब आदिवासी, किसान, मजदूर, मछुआरों तक को लूटा। सरकार ने उन्हीं को अपराधी बनाया। लेकिन आंदोलन ने संवैधानिक अधिकार और कानून के आधार भी लेकर हर विस्थापित को जमीन, जीविका, आवास और सुविधाऐ मिलने, बेहतर जिंदगी पाने तक लड़ने का संकल्प आज लेकर मशाले जलायी है। ‘‘31 जुलाई तक जबरन गांव खाली नहीं करेगी सरकार तो अधिकार देने का कर्तव्य पालन पहले करेगी, या नही, यह परीक्षा नर्मदा घाटी में होने वाली है’’ यह बात सनोबर मंसूरी ने कहां। श्यामा बहन मछुआरा और पेमल बहन मजदूर परिवारों की तरफ से मंच से पुकारती रही कि किसानों के बाद मछुआरों को भी वैकल्पिक जीविका का अधिकार देना ही होगा। रणवीर भाई तोमर ने चुनौती दी कि गांव गांव के घर, मंदिर, शाला, पेड़ो तक बसाने की जिम्मेदारी नर्मदा नियंत्रण प्राधिकरण और मध्यप्रदेश शासन पूरी करके दिखाए। मेधा पाटकर ने कहां कि आज तक देश में और नर्मदा घाटी में भी अन्य बांधों से उजाड़े गये सभी लोगो को सरकार ने बेरोजगार किया। सरदार सरोवर एकमात्र बांध है, जिसमें 14 हजार परिवारें को गुजरात या महाराष्ट्र में जमीन मिली है, लेकिन म0प्र0 शासन ने विस्थापितों को केवल भ्रष्टाचारियें के हवाले छोड दिया। नर्मदा सेवा यात्रा के दौरान भी विस्थापितों की समस्या पर कोई बात न करते हुये नर्मदा बचाने की, अवैध रेत खनन रोकने की, नर्मदा किनारे शराबबंदी की हवाई बात केवल की। नर्मदा और घाटी के जीवन को अपने संघर्ष के द्वारा बता सकते हैं। भागीरथ धनगर ने कहां कई गांवो में विरोध होने पर मुख्यमंत्री जी ने यात्रा के दौरान आश्वासन दिया कि वे आंदोलनकारियें बजट सत्र के बाद मिलेगें। नर्मदा घाटी उनकी परीक्षा लेकर रहेगी। चिन्मय मिश्रा वरिष्ठ पत्रकार, इन्दौर ने कहां कि सर्वोच्च अदालत के फैसले से जबकि साबित हुआ है कि म0प्र0 शासन के आज तक के आकड़े (0 बैलेन्स के) झूठे थे, तब झूठे शपथ पत्रों के लिए दोषी अधिकारियें को सजा दिलानी चाहिए। उन्होंने म0प्र0 शासनकर्ताओं को जो नर्मदा सेवा यात्रा द्वारा घूमकर लौटे है, उन्हें ऐलान किया कि सही नियत और संवेदना हो तो शिवराजसिंह बड़वानी में मंत्रिपरिषद बुलाकर संपूर्ण पुनर्वास की दिशा में फैसले/निर्णय करके और अमल करवा के दिखाये। सत्याग्रही धरना कल से भी रोज जारी रहेगा। हर रोज सैकड़ो आवेदन लिखे जाएंगे। हर गांव व पुनर्वास स्थल की सत्यस्थिति जारी होगी और संकल्प लिया जाएगा, पूरा अधिकार लेने तक लड़ते रहने का। (श्यामा मछुआरा) (रणवीर तोमर) (पवन यादव) (भागीरथ धनगर) (मेधा पाटकर)