जब कि नर्मदा घाटी के हजारों आदिवासी व अन्य परिवारों को डूब की छाया में धकेलना शासन कर्ताओं से जारी है, नर्मदा किनारे, सतपुड़ा की घाटी में पिछले 25 सालों से चल रही जीवनशालाएँ आज भी अपना जीवन शिक्षा का कार्य जारी रखी हुई हैं। नर्मदा नवनिर्माण अभियान की ओर से चलायी जा रही इन जीवनशालाओं से अभी तक 5000 से अधिक आदिवासियों की पहली शिक्षित पीढी के बच्चे प्राथमिक शिक्षा पूरी करके माध्यमिक और आगे पद्वी व पदव्युत्तर शिक्षा तक पहुंचे हैं। कई सारे राष्ट्रीय खिलाड़ी बने है, आज भी महाराष्ट के हॉकी संघ का गोलकीपर हमारा खुमान सिंह है। संदीप आज बड़ोदा में खेलने गया है।
नौ जीवनशालाओं के निवासी, 950 विद्यार्थियों में से दूसरी से चौथी तक के करीबन 700 विद्यार्थियों का 19वाँ बालमेला 17 से 20 फरवरी तक महाराष्ट्र के मणिबेली गाँव में संपन्न हुआ। मणिबेली की ऐतिहासिक भूमि संघर्ष और निर्माण की रही है। यहीं शुरु हुआ था, नर्मदा घाटी का पहला जल सत्याग्रह। जल समाधि की घोषणा, फिर केंद्रीय पुनर्विचार दल का गठन विश्व बैंक से गठित अंतरराष्ट्रीय मोर्स कमिटी की विशेष बैठकः उस वक्त सिद्धराज जी का 15 कि.मी. पैदल चलना। मणिबेली में सत्याग्रहियों पर लाठीचार्ज, गिरफ्तारियों, गांव के करीबन सभी आदिवासी भाईयों कों जेल, हम कार्यकर्ताओं का भूमिगत होना, डॉ बी. डी. शर्मा और अॅड. कन्नाबिरन का 5 कि.मी. चलकर झण्डावंदन के लिए पहुंचना, और मणिबेली में 1993 में पूरे मकान, सामान, ढोर, दुकान तक डूबने पर भी सत्याग्रही बनकर 13 परिवारों के साथ अन्यों ने गिरफ्तारी देना, यह सब घटित हुआ है। हम सब गवाह हैं, मणिबेली की जीवटता को गुजरात में खराब जमीन मिलने पर, पट्टे वापस किये थे, यह शासन ने अभी मंजूर किया है लेकिन अब महाराष्ट्र में जमीन पसंद करना और फिर आबंटित करना बाकी है। प्रक्रिया जारी है।
ऐसी मणिबेली में, पहाड़ी मैदान में उतर आये थे 700 से अधिक बच्चे, शिक्षक, मौसी, कामाठी, की 9 जीवनशालाओं की टीम और उनके साथ गांव – गांव के ‘देख-रेख समिति‘ के सदस्य आदिवासी, जीवनशालाओं से पिछले सालों में निकले मालेगांव, धडगांव के विद्यार्थी समूह। इनमें शामिल थे, शोभा वाघ आदिवासी छात्रावास, धडगांव के, आंदोलन और नवनिर्माण अभियान के साथ रहने, पढने, बढने, वाले बच्चें भी।
17 फरवरी को नन्दुरबार के संवेदनशील जिलाधिकारी, भूतपूर्व क्रीडा मंत्री प्रभाकर वलवी व अनेक अधिकारी, कर्मचारी, पंच, सरपंच और सामाजिक कार्यकर्ता भी शामिल हुए थे। स्वागत, सम्मान, भाषाओं के अलावा बच्चों के कुछ क्रीडा सामने और गीत से खुश होकर वे लौटे। नर्मदा नवनिर्माण अभियान के विश्वस्तों में से श्रीमती विजया चौहान, श्रीमती परवीन जहांगीर और अन्य समर्थक भी इस बार के विशेष अतिथि थे। तलोदा सामाजकार्य महाविद्यालय के प्रा. शिंदे अपनी 15 युवा विद्यार्थी टीम के अलावा परिवार के साथ चारों दिन रहे।
दूसरे दिन से सुबह प्रार्थना हल्कासा, व्यायाम, फिर जोशपूर्ण कबड्डी, खो-खो और वैयक्तिक स्पर्धा – वक्तृत्व चित्रकला, तीर कमान स्पर्धा बोट चलाने की स्पर्धा, बोटिंग की स्पर्धा लड़के और लड़कियों के समूहों ने सफल की। शाम 7:30 से रात 10:30 रोज चले गीत, नृत्य और नाटक की प्रतियोगिता जमकर भीड़ खीचती थी, मणिबेली के ही नहीं इद गिर्द के गांवों की भी, बालमेला देखने।
विविधता तो ऐसी कि नोटबंदी, कुपोषण, किसानों की समस्याएँ, पर्यावरण व जंगल, 31 साल का आंदोलन व अन्य विषयों पर प्रस्तुत नाट्य कई प्रकार के संदेश देते गये। रात के वक्त देर से सो कर भी 6 बजे उठकर, नदी में नहाकर नारों के साथ मैदान में आने वाले बच्चों का क्या कहें उनका अनुशासन, जोश, टीमवर्क, लगन और कुशलता देखकर बुजुर्ग तो चकित थे। लड़कियाँ खेलती थी तब पता चलता था, ये किसी प्रकार से लड़कों से कमजोर नहीं हैं।
चार दिनों तक पूरा कार्यक्रम जीवनशालाओं के शिक्षकों की गीत, नृत्य, नाटक में सृजनशीलता, खेल-कूद में अपनी शाला और बच्चों से रिश्ता तथा अनुशासकता सामने लाते गया। यह सब अनुभव सुखद रहा जरुर, लेकिन मणिबेली भी आज जीवन-मौत की कगार पर है।
मणिबेली 59 मीटर पर डूब गयी थी, आज 139 मीटर के बांध से होगा? क्या, घरों- खेतों को और भी डूबाया जाएगा? क्या बिना पुनर्वास, बिना वन अधिकार, अनेको शादीशुदा युवाओं को बिना घोषित किये जल समाधि होगी? महाराष्ट्र शासन और अधिकारी संवेदना जरुर दिखा रहे हैं, प्रक्रिया में सहयोग और सहभाग भी है, फिर भी 8 फरवरी के सर्वोच्च न्यायालय के आदेश अनुसार 3 महीने में जमीन खरीदी से लेकर नये पुनर्वास स्थलों के निर्माण तक सब कुछ पूरा होना और स्थलांतर भी असंभव ही दिखता है। महाराष्ट्र गुजरात को जवाब देगा? फैसले पर भी न्याय की जीत होगी?
जीवनशालाएँ भी नहीं बचेगी अगर पानी भरना ही तय किया तो। फिर भी बचेगी आदिवासीयों की ताकत, एकता, सादगी, स्वावलंबन, संघर्ष और निर्माण की। जिसके चलते ही 14000 परिवारों को इस एकमात्र बांध और परियोजना में जमीन के साथ महाराष्ट्र व गुजरात में पुनर्वास मिल पाया है, लेकिन आज भी बाकी हैं हजारों परिवार 214 कि.मी. तक फैलने वाले जलाशय के डूब क्षैत्र में, मध्य प्रदेश तक। बाल मेला के समारोह में छोटे बड़े बक्षीस अपने सीने से लगाते हुए भी नारा गूँज रहा था, बच्चों से ही – बच्चा बच्चा लड़ेगा। आंदोलन चलाएगा।